कम्प्यूटर सिस्टम की अवधारणा – Computer system concept

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Concept and Working Principle of Computer System – कंप्यूटर सिस्टम की अवधारणा एवं कार्य सिद्धांत

कम्प्यूटर सिस्टम की अवधारणा (concept), कम्प्यूटर के आंतरिक भाग में स्थित इलेक्ट्रॉनिक सर्किटइलेक्ट्रिकल सिग्नल्स (बाइनरी कोड 0 1) की मदद से डेटा के प्रोसेसिंग पर आधारित है।

एवं इसका कार्य सिद्धान्त (working principle) निम्न लिखित चरणों का अनुसरण करता है –

१. कम्प्यूटर द्वारा input devices के माध्यम से डेटा व निर्देश ग्रहण करना।

२. सीपीयू के द्वारा दिए गए निर्देशों के आधार पर डेटा की प्रोसेसिंग करना।

३. प्रोसेसिंग के पहले व दौरान डेटा एवं निर्देशों को मेमोरी में संग्रहित करना ताकि प्रोसेसिंग के लिए आवश्यक समस्त डेटा व निर्देश CPU द्वारा प्राप्त किया जा सकें,

४. व प्रोसेसिंग के परिणाम को आउटपुट डिवाइस के माध्यम से प्रस्तुत करना, एवं परमानेंट मेमोरी में save (सुरक्षित) करना ताकि जरूरत पड़ने पर इनफॉरमेशन/ परिणाम को दोबारा प्राप्त किया जा सके।

कम्प्यूटर के आंतरिक भाग में स्थित इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में कई कंपोनेंट्स जैसे कि – ट्रांजिस्टर, रजिस्टर, कैपसिटर, डायोड, लॉजिक गेट्स और इन सबके संयोजन से बने इंटीग्रेटेड सर्किट (IC) आदि सम्मिलित होते हैं। इन्हीं कंपोनेंट्स में विद्युत सिग्नल्स (इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स) प्रवाहित (flow) होते हैं ये विद्युत सिग्नल्स 0 व 1 अर्थात बाइनरी फॉर्म में होते हैं। कम्प्यूटर में इन्हीं सिग्नल्स को बाइनरी नंबर कहते हैं।

Computer system के आंतरिक भाग में डेटा व इनफॉरमेशन की प्रोसेसिंग, इसके इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स (विद्युत के संकेत) के प्रवाह (संचरण) से संपन्न होती है। इन इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को पल्स (pulse) भी कहते हैं।

ये signals 0 व 1 के रूप में होते हैं –

मतलब जब सर्किट में सिग्नल्स प्रवाहित हो रहे हैं तो उनका मान 1 होता है, और जब सिग्नल प्रवाहित नहीं हो रहे हैं तो उनका मान 0 होता है। इन दो अंको (0 व 1) को बाइनरी अंक या बाइनरी संख्या कहते हैं।

एक बाइनरी अंक Bit कहलाता है अर्थात एक बिट का मान या तो 0 होता है या फिर 1 होता है। कम्प्यूटर में कोई भी डाटा एक बिट से कम नहीं हो सकता है।

Bit, डेटा की सबसे छोटी इकाई होती है – smallest unit of Data is a bit और bit, binary digit का संक्षिप्त रूप है।

यही बाइनरी नंबर सिस्टम, डिजिटल कम्युनिकेशन एवं कम्प्यूटिंग सिस्टम के आधार हैं। जहां सारे डेटा और इनफॉरमेशन इन्हीं दो अंकों के संयोजन से प्रस्तुत किये जाते हैं और कम्प्यूटर (CPU) सभी प्रकार के डेटा के प्रोसेसिंग के लिए, और डेटा व इनफॉरमेशन को मेमोरी में संग्रहित करने के लिए, बाइनरी नंबर सिस्टम का ही प्रयोग करता है।

अर्थात कम्प्यूटर (CPU) सभी प्रकार के डेटा (टेक्स्ट, इमेज, वीडियो, ऑडियो, ग्राफिक्स) व instructions (निर्देश), इन्हीं विद्युत संकेतों (0 व 1) के माध्यम से ग्रहण, प्रोसेस व मेमोरी में स्टोर करता है।

यही दो विद्युत संकेत 0 व 1, बाइनरी अंक (binary digit) कहलाते हैं और computer इन्हीं अंको से बनी भाषा को डायरेक्टली समझ सकता है। इन दो अंकों के संयोजन से बनी भाषा – बाइनरी लैंग्वेज अथवा मशीन लैंग्वेज (मशीन कोड) कहलाती है।

चाहे किसी भी प्रकार का कम्प्यूटर हो, उसकी मूल भाषा यही बाइनरी भाषा ही होती है। वह इसी को बिना किसी ट्रांसलेटर प्रोग्राम (कंपाइलर या इंटरप्रेटर) के सीधे ही समझ लेता है। इसलिए कम्प्यूटर को दिए जाने वाले सारे data व निर्देश, या तो बाइनरी संख्या 0 व 1 के रूप में लिखे जाते हैं या फिर किसी ट्रांसलेटर प्रोग्राम की सहायता से बाइनरी कोड में ट्रांसलेट करके कम्प्यूटर को प्रदान किये जाते हैं पर कम्प्यूटर समझता तो है केवल 0 व 1 की ही भाषा।

CPU, प्रोसेसिंग के दौरान इन्हीं विद्युत सिग्नल्स, जो कि 0 व 1 के रूप में होते हैं, को ग्रहण करता है और दिए गए निर्देशों के आधार पर प्रोसेसिंग का कार्य संपन्न करता है।